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संपादकीय: कंस का वध

 

आकाश शर्मा आज़ाद

आगरा उप्र

अधर्मी, अत्याचारी पापी दुष्ट कंस ज़ब अपनी बहन देवकी और वासुदेव, का विवाह कराकर ससम्मान रथ में बिठाकर,

 उसके ससुराल ले जा रहा था,, तब मार्ग में आकाशवाणी हुई, आकाशवाणी ने कहा हे दुर्गाचारी कंस जिस बहन तू

 बड़े प्रेम से रथ में बिठाकर  विदा कर रहा है, उसी बहन का

 आठवां पुत्र तेरा काल होगा,, तेरा अंत करेगा आकाशवाणी के द्वारा अपनी मृत्यु का समाचार सुनके, कंस क्रोध में पागल हो गया, उसने अपनी बहन देवकी को मारने का प्रयास किया! किंतु वासुदेव ने उसे रोक दिया और कहां हे,

राजन हर बच्चे को जन्म के बाद मै आपको सौंप दूंगा 

 कृपया आप देवकी के प्राण न ले, आप देवकी को प्राण दान दें, यह सुनकर दुराचारी कंस ने, देवकी के प्राण तो नहीं लिए, किंतु वसुदेव,देवकी को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया !  मथुरा के राजा कंस ने देवी देवकी की छह संतानों को मृत्यु के घाट उतार दिया देवी देवकी की सातवीं संतान बलराम थे जिनको देवी योग माया द्वारा देवी रोहिणी के गर्भ मे  स्थानांतरित कर दिया गया था  देवी देवकी को आठवीं संतान के रूप में श्री हरि विष्णु के अवतार श्री कृष्ण प्राप्त हुए,   कंस के कारागार में श्री कृष्ण का जन्म होते ही,

 वासुदेव और देवकी को भगवान विष्णु के दिव्य दर्शन प्राप्त हुए, वासुदेव को भगवान द्वारा ये आदेश  कि मेरे इस अवतार को तुम कंस के कारागार से दूर गोकुल में यशोदा मैया और नंद बाबा के घर पर छोड़ आओ,  शीघ्रता करो जल्दी जाओ, प्रभु का आदेश पाकर वासुदेव  चल दिए

 छोटे से कन्हैया को लेकर, कंस के कारागार से दूर गोकुल की ओर,  सो गए कंस के पहरेदार सारे, बाबा वासुदेव के

 टूट गए बंधन आज सारे, हुआ चमत्कार खुल गए कारागार के द्वार आज सारे, घनघोर वर्षा तूफान आंधी में, नंद बाबा लेकर पहुंचे श्री कृष्ण को यशोदा मैया के द्वार पर, नंद बाबा ने कृष्ण को यशोदा मैया के आंचल में डाला और यशोदा मैया की कन्या लेकर चले आए कंस के कारागार में,,

 सुबह की पहली किरण के साथ जब कंस कारागार में आया

 उसने माता देवकी से, वध करने के लिए अपने काल और माता की आठवीं संतान को मांगा तों माता ने उत्तर दिया

 इस बार तो मेरे गर्भ से, एक पुत्री ने है जन्म लिया!

 इसकी जान तो छोड़ दो भैया ये तुम्हारा काल नहीं है 

 इस कन्या से तुम्हारा कोई बैर नहीं है! पर उस पापी कंस को जरा भी दया न आई अपने जीवन के आगे उस दुष्ट को,

 कुछ भी नहीं दे रहा था दिखाई, कंस ने माता देवकी के हाथों से उस दिव्य कन्या को ले लिया!जैसे ही कंस ने दिव्य कन्या को मारना चाहा, इस पल में एक चमत्कार हुआ! उस दिव्य कन्या के छोटे से रूप ने आकाश में जाकर देवी का एक विशाल रूप लिया! उस दिव्य देवी ने चेतावनी देते हुए कहा कंस से, रे मूर्ख दुष्ट कंस तेरा काल तों, जन्म ले चुका है

 वो इस समय सृष्टि की सुरक्षित हवाओं में, सांसें ले रहा है !!

 रे महा पापी कंस तेरा अंत अब करीब है, तेरे शीश पर है काल की छाया तू अपनी मृत्यु के समीप है! कंस को अंतिम चेतावनी देकर देवी अंतर ध्यान हो गई,, कंस इस चेतावनी से बहुत भयभीत हुआ उस अत्याचारी ने, माता देवकी और वासुदेव पर सैनिकों का पहरा बढ़ा दिया ! उधर गोकुल वासियों को जब पता चला के यशोदा मैया ने लाला को जन्म दिया है, तो संपूर्ण गोकुल में आनंद और उत्सव आरंभ हुआ

 नंद बाबा ने प्रसन्नता में, ऋषि मुनियों को बहुत सारा दान दिया! बालकृष्ण की नटखट लीलाओं से, सारा गोकुल झूम उठा! समय आया जब नामकरण का तों, माता यशोदा तथा नंद बाबा के कहने पर गोपनीय तरीके से श्री गर्गाचार्य ने,

 श्री कृष्ण और बलराम का नामकरण किया! कंस के,

 गुप्तचरो, के भय श्री कृष्ण और बलराम का नामकरण

 गोपनीय रूप से किया गया ! कंस को अपने गुप्तचरो द्वारा

 ज्ञात हुआ की देवकी की आठवीं संतान गोकुल में है!

 कंस ने अपने काल श्री कृष्ण को समाप्त करने के लिए,

 तरह-तरह के षड्यंत्र रचे ! अलग-अलग कई राक्षसों को भेजा कंस ने कृष्ण को समाप्त करने के लिए,, सर्वप्रथम राक्षसी पूतना आई एक सुंदर स्त्री के रूप में, श्री कृष्ण को

 मारने के लिए, अपने स्तनो विष लगाकर कंस का कार्य पूर्ण करने के लिए, पूतना ने यशोदा माता को बताया कि मै,

 आपके नटखट कृष्ण के दर्शन करने बड़ी दूर देश से आई हूं

 उचित अवसर प्राप्त होते ही पूतना ने, अपना विष युक्त दूध

 श्री कृष्ण को पान कराया, उड़ गई आकाश में लेकर कृष्ण को पूतना गोकुल वासियों को पूतना ने अपना असली रूप दिखाया! देख कर राक्षसी का असली रूप गोकुल वासियों का मन घबराया श्री कृष्ण ने पूतना को माँ का स्थान दिया

पूतना का दूध पान कर श्री कृष्ण ने पूतना को अपना बैकुंठ धाम दिया ! पूतना के बाद कंस ने कृष्ण को मारने के लिए,

शकटासुर, त्रिनावर्त, वत्सासुर, बकासुर, अघासुर, केशी और प्रलम्बासुर जैसे कई राक्षसों को भेजा किंतु प्रभु श्री कृष्ण ने अपनी बल और बुद्धि से, सबका उद्धार किया!

 श्री कृष्ण के बाल रूप के दर्शन करने के लिए, शिव शंकर भोलेनाथ भी पृथ्वी पर आए थे श्री कृष्ण और प्रभु भोलेनाथ के इस मिलन से, मृत्यु लोक के भाग खुल आए थे, 

 श्री, कृष्ण ने बड़े होकर कई महत्वपूर्ण लीलाएं की, उसमें माखन चोरी की लीला बड़ी मनमोहक थी, श्री कृष्ण ने

 कालिया नाग की आतंक से, यमुना को मुक्त कराया था !!

 श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर देवराज इंद्र का अभिमान तोडकर गोवर्धन पूजा का आरंभ कराया था ! जब कंस के सभी प्रयास श्री कृष्ण को मारने के लिए, असफल हो गए, तो उसने अपने मंत्रियों के साथ मिलकर, एक नया षड्यंत्र रचा उस अत्याचारी कंस ने,

 यदुवंशियों में सम्माननीय व्यक्ति अक्रूर जी को, भेजा मथुरा में एक उत्सव के बहाने से, उत्सव में कृष्ण को लाने के लिए

 गोकुल  अक्रूर जी को ज्ञात था ये सारा षड्यंत्र है कंस का

 कृष्ण को मारने के लिए, परंतु अक्रूर जी के पास और कोई मार्ग शेष नहीं था वो, मजबूर थे, कृष्ण को कंस के पास ले जाने के लिए, गोकुल पहुंचकर अक्रूर जी ने, नंद बाबा और यशोदा माता को सारा सत्य बताया अक्रूर जी ने बताया कि,

 कृष्ण उनका पुत्र नहीं है, कृष्ण देवक़ी और वासुदेव का पुत्र है, कृष्ण के प्राण बचाने के लिए, वासुदेव ने कृष्ण को गोकुल में छोड़ा था, कंस महाराज ने कृष्ण मथुरा के उत्सव में,  बुलाया है सम्मानित करने के लिए, अक्रूर जी ने बताया कि, यह कंस महाराज का षड्यंत्र है कृष्ण की मृत्यु के लिए,

 यह सुनते ही के कृष्ण मेरा पुत्र नहीं है यशोदा माता की आंखों में आज आंसुओं का सैलाब आया था यशोदा माता तैयार नहीं थी कृष्ण को मथुरा भेजने के लिए, परंतु अक्रूर जी ने बताया कि यह आवश्यक है वासुदेव और देवकी के प्राण बचाने के लिए, उनको कंस की कारागार से मुक्त करने के लिए, बड़े भारी मन से यशोदा माता ने अपने पुत्र को विदा किया मथुरा के लिए, मार्ग में अक्रूर जी को, श्री कृष्ण ने अपने दर्शन देकर अपने सत्य से अवगत कराया  

 कंस ने कृष्ण को मारने के लिए एक मदमस्त हाथी को

 मदिरा पिलाकर तैयार किया था! परंतु कृष्ण ने अपने बाहुबल से, उसको यमलोक भेज दिया, कंस ने कृष्ण को पराजित करने के लिए तथा स्वयं को सर्व शक्तिशाली सिद्ध करने के लिए, एक धनुष यज्ञ का आयोजन किया 

 परंतु श्री कृष्ण ने उस यज्ञ को भंग करते हुए, शिव का महान धनुष भी तोड़ दिया था कुछ इस तरह श्री कृष्ण ने,

 कंस की मृत्यु का शंखनाद किया था ! अगली सुबह कंस के अखाड़े में पहुंचकर बलराम और श्री कृष्ण ने  महाराज कस की चुनौती स्वीकार कर, उसके चारों पहलवानों को मृत्यु के घाट उतार कर, कंस के विरुद्ध युद्ध का आरंभ किया था 

 अंततः मथुरा की प्रजा ने भी महाराज कंस के विरुद्ध विद्रोह करके, युद्ध में श्री कृष्ण का साथ दिया ! और श्री कृष्ण ने अपनी रौद्र रूप मे महा पापी कंस का संघार करके वसुंधरा को एक महा पापी के बोझ से मुक्त किया श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस को अपना बैकुंठ धाम देकर अपने माता-पिता को भी मुक्त कराया  तथा श्री कृष्ण ने, मथुरा वासियों को अपनी दिव्यता से अवगत कराया!  जैसे ही श्री कृष्ण महा पापी कंस का वध किया,  इस वसुंधरा का कोना-कोना बोल उठा

 जय -जय महावतार श्री कृष्ण,जय जय गिरधर गोपाल

 जय हो तुम्हारी महामाया......


आकाश शर्मा आज़ाद

आगरा उप्र

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